हेमंत कुमार/ जी क़े चक्रवर्ती
महाराजा टिकैत राय का जन्म स्थान कस्बा इचौली है, यह स्थान टिकैतनगर बाराबंकी के पास है। टिकैतराय अवध में इतने लोकप्रिय थे की उनके बसाये गए सभी स्थानों के लोग उनको अपने नगर का मूल निवासी बताते है। टिकैतराय कायस्थ परिवार से थे। उनके पिता का नाम जयमल था और पत्नी का नाम रुक्मणी देवी था। उनके एक मात्र पुत्र का नाम हनुमन्त बली था।
राजा टिकैत राय के आरंभिक जीवन के विषय में मोहम्मद नजमुल गनी खाँ रामपुरी ने अपनी पुस्तक तारीखे अवध की जिल्द 3, पेज 133 पर लिखा है- राजा टिकैतराय का हाल यह है कि वह शख्स नवाब शुजाउद्दौला के जवाहर खाने के तहबील दार हसमत अली ख़ाँ के नौकर थे, जो नवाब शुजाउद्दौला के दामाद थे। उनका वेतन करीब 20 रूपये मासिक था। यहां से अलग होकर आपने अपने मुरावतारूद्दौला के दीवानखाने के दरोगा अकबर अली के पास नौकरी की। अपनी खुशकलामी और शेरो- शायरी के शौक के कारण आपकी आम दफ्तर अनवर अली खां रव्वाजलजसरा मुरावतारूद्दौली तक रसूख हासिल किया।
दिवान का पद और राजा का ख़िताब पाया। यह शख्स खुशवजह (जो अपनी परम्परा पर दृढ़ रहे) और प्रकृति से सहष्णु और गंभीर था। उमूरे खैर( जनसाधारण की भलाई ) में नेक नामी के साथ शोहरत भी हासिल की। सरकारे लखनऊ में ब्राह्मणों के वास्ते रोजी ने चंदे का दरवाजा इनकी वजह से खुला।
‘शाहाने अवध’ और कौमी यकजिहती के लेखक डॉ. अकबर हैदरी के अनुसार टिकैत राय आजादरी दिलोजान और जोशखरोश से करते थे। इसी तरह लाला सीता राम ने ‘अयोध्या का इतिहास’ में लिखा है टिकैतराय दान पुण्य में बहुत प्रसिद्ध थे। लखनऊ का राजा बाजार इन्ही का बसा हुआ है प्रयागराज में मोतीमहल जिसमे आजकल दारागंज हाईस्कूल है, इन्ही की बनवाई धर्मशाला थी। अपनी किताब ‘ लखनऊ नामा’ ने डॉ. योगेश प्रवीण लिखते हैं कि लालबाग़ में राजा टिकैतराय की कचहरी थी। राजा बाजार मोहल्ला आपने बसाया था। वहीं पर दीवान खाना टिकैतराय उनका घर था। अब उस जगह मुस्लिम शादिखाना बन गया है। राविवार को लगने वाली नखास की बाजार उन्ही की लगवाई हुई है।
शाहजहां को मुगल शासकों में इंजीनियर शासक कहा जाता है उसी प्रकार अवध क्षेत्र में टिकैतराय को अपने निर्माण कार्यों के कारण इंजीनियर दीवान कर सकते हैं। उन्होंने जनहित में उपयोग में आने वाले पुल, तालाब, घाट, मंदिर और मस्जिदों का निर्माण कराया यहां उल्लेखनीय है कि कि जब नवाब आसफ़ुद्दौला अपनी राजधानी फैजाबाद से उठाकर लखनऊ ले आए, तब राजा टिकैत राय भी उनके साथ लखनऊ आ गये। नवाब ने संघ 1775 में उनको अपना दीवान और प्रधानमंत्री बनाया। साथ में पालकी की सवारी और 22 पारचे की खिलाअत प्रदान की। राजा साहब की मृत्यु सन 1800 ईo में हुई। इन पच्चीस वर्षों में उन्होंने जितने भी निर्माण कार्य कराए उतने काम आज का यूपी का पीडब्लूडी भी नहीं करा सकता।
राजा टिकैतराय ने कस्बा इचौली, बाराबंकी में एक शानदार पांच मंजिला पक्का तालाब बनवाया। जिसके तीन मंजिल पानी में है। इसकी नकल में बड़े बड़े इमामबाड़े की बावली बनी है। यह दोनों निर्माण राजा साहब की देखरेख में हुए थे। तालाब के किनारे बने मंदिर में लगी भगवान की मूर्ति चोर उठा ले गये है और देखरेख के अभाव में यह तालाब नष्ट होता जा रहा है यह एक धरोहर है। राज्य पुरातत्व विभाग को को चाहिए कि उस तालाब को अपने नियंत्रण में लेकर इसके संरक्षक का कार्य करें।
लखनऊ में टिकैतराय तालाब कॉलोनी उनके नाम पर है। यहां राजा साहब ने एक बड़ा तालाब तथा एक छोटा तालाब बनवाया था। अब बड़े तालाब का बड़े तालाब की मरम्मत का कार्य ए्लडीए ने प्रधानमंत्री रह चुके अटल बिहारी वाजपेई के निर्देश पर कराया है किंतु छोटा तालाब अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुका है। इस जगह अब मधुबन गेस्ट हाउस बना हुआ है। इसी प्रकार कोटवा धाम बाराबंकी का अमरन तालाब भी राजा साहब का बनवाया हुआ है।
नगवा नदी का पुल- लखनऊ से कानपुर जाने वाली पुरानी सड़क मोहान होकर जाती थी, जो पुराने कानपुर के नवाबगंज के पास निकलती थी। इस सड़क पर लखनऊ से 32 किलोमीटर दूरी पर मटरिया से आने वाली नगवा नदी पर राजा साहब ने एक पुल बनवाया था। यह पुल अवध के वास्तुशिल्प का एक सुंदर उदाहरण है।
बेता नदी का पुल लखनऊ से मलिहाबाद जाने वाले मार्ग पर बेता नदी पर भी अपने जनता की सुविधा के लिए पुल बनवाया और वही नदी के किनारे राज राजेश्वर महादेव मंदिर बनवाया जो आजकल पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। बिठूर का गंगा घाट कानपुर के निकट बिठूर या ब्रह्मावर्त नामक प्राचीन तीर्थ स्थल है। बिठूर को 52 घाटों की नगरी कहा जाता है। किंतु अब वहां केवल 29 घाट ही बच्चे हैं। उनमे सबसे सुंदर पत्थर घाट है। जिसको राजा टिकैतराय ने बनवाया था। यही पर अपने एक शिवमंदिर और दो मंजिला धर्मशाला भी बनवाई थी जो अभी भी है।
डलमऊ का गंगा घाट जाजमऊ से आगे बढ़ती हुई गंगा की धार रायबरेली और फतेहपुर की विभाजक सिमा बनकर बहती है। रायबरेली से बीस मील पहले बैसवारे का प्रमुख स्थान डलमऊ पड़ता है जब राजा टिकैतराय बैसवारे के नाजिम थे तो अपनी निजामत में उन्होंने टिकैतनगर बसाया और बिठूर की तरह डलमऊ में गंगा के किनारे एक घाट का निर्माण किया। इसका उल्लेख गजेटियर ऑफ रायबरेली में किया गया है।
कहते हैं कि महाराजा टिकैतराय ने पूरे अवध क्षेत्र में एक सौ आठ शिवमंदिर बनवाये थे। उनमें से कुछ प्रसिद्ध मंदिर इस प्रकार हैं- चौमुखा मंदिर, मलियाबाद मलिहाबाद के दर्जीयान मोहल्ला में 18 वीं सदी के राजा टिकैतराय ने एक शिव मंदिर बनवाया, जिसमें भगवान शिव का चतुरानन लिंग स्थापित है। इस कारण इसे चौमुखा मंदिर भी कहते हैं।
रहमान खेड़ा (टिकैतगंज) का शिवाला राजा टिकैतराय ने रहमान खेड़ा के पास टिकैतगंज बसाया और वहां पर एक शिवमंदिर बनवाया। आपका बनवाया एक शिवाला महमदनगर में भी है। जिसमें उनकी अपनी पत्नी के साथ एक पंडित को दान देते मूर्ति भी लगी थी जिसको शरारती तत्वों ने खंडित कर दिया है।
हनुमान गढ़ी मंदिर, अयोध्या हनुमान जी के इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण टिकैतराय ने कराया था। गढ़ी के रूप में इसका निर्माण हुआ है। इसके ऊपर हमलों को नाकाम किया जा सके। उन्होंने मंदिर का खर्च चलाने के लिए दानपात्र भी दिया था। उन्होंने धर्मान्ध मुसलमानों के आमंत्रण से ध्वस्त अयोध्या में जान फूंक दी।
ब्राह्मणों को संस्कृत की शिक्षा के लिए संस्कृत की पाठशाला स्थापित की। उनके खर्चे के लिए प्रचुर दान दिये।
राम जानकी मंदिर लखनऊ में टिकैतराय तालाब के पास अपने आराध्य भगवान राम का यह मंदिर बनवाया। मंदिरों के साथ अपने कई मस्जिदों और इमामबाड़ों का भी निर्माण कराया। जिसमें चौक के नक्खास होकर तालकटोरा जाने वाली सड़क तुलसीदास मार्ग के दक्षिण सिरे पर टिकैतराय के नाम से बसाए गए मोहल्ले में उनकी बनवाई हुई एक मस्जिद है। जिसके दरवाजे के ऊपर उनके नाम का पत्थर लगा हुआ है।
इसी तरह हैदरगंज में उन्होंने एक छोटी मस्जिद बनवाई। पारा गांव में उनकी बनवाई मस्जिद है। इस प्रकार बेला नदी के पुल के पास उनकी बनवाई एक अन्य मस्जिद भी है। इन सबके साथ उन्होंने लखनऊ में टिकैतगंज कदीम और टिकैतगंज कण्डहा तथा राजा बजार बसाये। राजा बाजार में उनका निवास स्थान टिकैतराय का दीवानखाना था, जो उनके समय में लखनऊ का टाउनहाल कहलाता था। आज उसकी जगह मुस्लिम शादी घर बना हुआ है। उन्होंने नखास की रविवार की बाजार लगवाई थी जो अब तक लगती चली आ रही है।
उन्होंने लखनऊ में निशात बाग लगवाया था। जिसमे आजकल अपट्रान की फैक्ट्री लगी हुई है। नवाब वजीर अली को अंग्रेजो ने यही से गिरफ्तार किया था। इसी प्रकार उन्होंने बाराबंकी जिले में टिकैतनगर और टिकैतगंज मोहल्ले बसाये। उन्हने टिकैतनगर में एक बड़ा बाग लगवाया और भंवरेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया और एक हाट लगवाई जो अब तक लगती चली आ रही है। इस सिलसिले में एक बात उल्लेखनीय है कि टिकैतराय जहां भी रहे उन्होंने जनता की भलाई के काम किये तथा उनके रहने के लिए गांव बसाये। जब डलमऊ में रहे तो वहां टिकैतराय बसाया। इसी प्रकार शाहजहांपुर और बदायुँ मे भी आपके नाम से टिकैतनगर बसे हुये हैं। नवाब के काम से आप कंम्पनी सरकार के पास कलकत्ता गये थे। वहां पर भी आप के नाम पर टिकैतनगर है उनकी इस महानता की प्रशंसा करते हुए गजेटियर ऑफ अवध, लखनऊ, बाराबंकी, रायबरेली, अयोधया,
शाहजहांपुर और बदायूं में लिखा गया है-
‘महाराजा टिकैतराय को अवध का दानवीर कर्ण कहा जाता है’
राजा साहब परम वैष्णव होने के साथ ही साथ शिवभक्त भी थे। सुबह पूजा करने के बाद गरीबों को दान देते थे। एक हाथ में मुट्ठी भर कर चांदी के सिक्के लुटाना उनकी आदत थी। रजा साहब का दिवान खाना विद्वानों से भरा रहता था। उन्होंने ‘टिकैतराय प्रकाश’ नामक पुस्तक लिखी थी।