जल संरक्षण की जरूरत पर जोर तो काफी समय से दिया जा रहा है और इसके लिए तमाम उपाय भी सुझाए जा चुके हैं लेकिन उनका महत्व नहीं समझा गया और उन पर अमल नहीं किया गया जिसका नतीजा अब सामने आ रहा है। हमारे समाज में जल का बहुत महत्व माना गया है। पर आधुनिक समय में जल को बचाने पर ध्यान नहीं दिया गया बल्कि विकास की अंधी दौड़ में इसका अंधाधुंध दोहन किया जाने लगा।
वर्षा का पानी बचाने का सुझाव भी सामने आया पर उसको भी गंभीरता से नहीं लिया गया। इसकी जगह तालाबों, कुओं आदि जैसे जल के पारंपरिक स्रोतों को भी पाटकर उनके ऊपर निर्माण कर दिए गए। प्रकृति के जल रूपी वरदान की लगातार उपेक्षा होते रहने के परिणाम सामने आने लगे हैं।
बेंगलुरु भारत का काफी विकसित शहर है लेकिन वहां जल संकट इतना गंभीर हो गया है कि वाहनों को साफ करने और बागवानी में पानी के इस्तेमाल पर जुर्माना लगाने का नियम बना दिया गया है और निर्माण कार्यों पर भी रोक लगा दी गई है। कुछ समय पहले चेन्नई और शिमला जैसे शहरों में भी भीषण जल संकट की समस्या आ गई थी।
एक रिपोर्ट में तो यह चेतावनी दी गई है कि सन 2030 तक भारत के जयपुर, गांधीनगर, दिल्ली, गुरुग्राम, इंदौर, अमृतसर, लुधियाना, हैदराबाद, बेंगलुरु, चेन्नई और गाजियाबाद जैसे विकसित शहरों को गंभीर जल संकट भुगतना पड़ सकता है। अब तो विदेशों में भी जल की बर्बादी को रोकने की जरूरत पर काम किया जा रहा है।
भारत में भी लोगों को समझना होगा कि केवल थोथी बातों और नारों से जल की बर्बादी नहीं रुकेगी बल्कि इसके लिए गंभीरता से काम करना होगा वरना आने वाले दिनों में पानी के लिए त्राहि-त्राहि की स्थिति का सामना सभी को करना पड़ेगा।