अजीत कुमार सिंह
चौदह वर्ष बाद प्रभु श्रीराम अयोध्या लौटे हैं जो आंखें चौदह वर्षों में कभी सूखी नहीं अब उनमें उल्लास लौट आया है चौदह वर्ष बाद अयोध्या के वृक्षों पर नए पल्लव आये हैं चौदह वर्षों बाद वहाँ की हवा में फूलों की सुगंध पसरी है राज्याभिषेक की तैयारियां चल रही हैं महात्मा भरत किसी नन्हे बच्चे की तरह भागदौड़ कर रहे हैं लक्ष्मण, शत्रुघ्न समूची अयोध्या को सजा देने के बाद अब राजमहल और राजसभा को सजवा रहे हैं
महाराज दशरथ की मृत्यु के बाद यह पहला अवसर है जब रघुकुल में हर्ष पसरा है माता कैकई जैसे अपने पश्चाताप के यज्ञ को आज ही पूर्ण कर लेना चाहती हैं लोक में एक मान्यता है कि राष्ट्र में कोई महान धार्मिक अवसर आ जाय तो सभी पापियों के पाप कट जाते हैं कैकई भी संतुष्ट हैं “मेरे राम का राज्याभिषेक ही मेरे पापों को धो देगा…” वे बहुओं को मङ्गल गीत गाते रहने के लिए प्रेरित कर रही हैं मीठी झिड़की देते हुए कहती हैं “यही सीखी हो सब मिथिला में जी चार गीत न गाये जा रहे…” खिलखिलाती बहुओं ने वही वंदना शुरू की है,जो कभी राम को पाने के लिए सीता ने माता गौरी के आगे गाया था जय जय गिरिवर राज किशोरी… जय महेश मुख चंद चकोरी… लोक में मङ्गल गीतों की शुरुआत माता के गीतों से होती है सारे दरबारी जुट गए हैं गवैये सुन्दर सुन्दर तान सुना रहे हैं दास-दासियाँ लगातार पुष्प बरसा रही हैं लोग बाग अपने भाग्य को सराहते हुए धन्य धन्य कर रहे हैं उत्साहित जन बार बार यूँ ही चिल्ला उठते हैं जय श्रीराम… इस सबके बीच एक व्यक्ति ऐसा है जिसकी आंखें लगातार कुछ ढूंढ रही हैं वे कभी इधर उधर दरबारियों के मध्य देखते हैं तो कभी प्रजाजनों के बीच मन में द्वंद चल रहा है”जब तक वे नहीं आते तब तक राज्याभिषेक कैसे हो सकता है उनके बिना कहाँ कुछ सम्भव है” ये व्यग्र व्यक्ति स्वयं मर्यादापुरुषोत्तम हैं पर उनकी व्यग्रता कोई समझ नहीं सकता उनकी चिंता केवल वे ही जानते हैं
अचानक उनकी दृष्टि ऋषियों के बीच खड़े एक व्यक्ति पर पड़ती है बढ़ी हुई दाढ़ी, कपूर जैसा गोरा रङ्ग, माथे पर लटकी लम्बी जटाएं और गले के मध्य में उभरा नीला चिन्ह… एकाएक मर्यादापुरुषोत्तम की सारी व्यग्रता समाप्त हो गयी उनके मुख पर स्वाभाविक प्रसन्नता पसर गयी है दिव्य महापुरुष आगे बढ़ते हैं संगीतकारों ने तान छेड़ी है उसी से मिल कर जाने किधर से डमरू की ध्वनि आने लगी है वे गाते हैं जय राम रमा रमनम् समनम्, भव ताप भयाकुल पाहि जनम… पुरुषोत्तम ने हाथ जोड़ कर उस दिव्य विभूति को प्रणाम किया है प्रजा अपने उल्लास में मग्न है, उधर किसी की दृष्टि नहीं जाती वे मन ही मन कहते हैं आप आ गए प्रभु तो हमें भी आना ही था यह राष्ट्र महादेव की डीह है यहाँ जब जब कुछ शुभ होगा, महादेव किसी न किसी रूप में आ ही जायेंगे हर हर महादेव…