ध्यान का अर्थ है समर्पण, ध्यान का अर्थ है अपने को पूरी तरह छोड़ देना परमात्मा के हाथों में ध्यान कोई क्रिया नहीं है जो आपको करनी है ध्यान का अर्थ है कुछ भी नहीं करना और छोड़ देना उसके हाथों में जो कि सचमुच ही हमें संभाले हुए है ध्यान के लिए पहली बात जो स्मरण रखना है वो है समर्पण सरेंडर टोटल सरेंडर जिसने अपने को थोड़ा भी पकड़ा वह ध्यान में नहीं जा सकेगा क्योंकि अपने को पकड़ने का मतलब है अपने तक ही रुक जाना और छोड़ देने का अर्थ है उस तक पहुंच जाना उस तक पहुंचना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए जो कि अपने (अपनेपन यानी मैं, मेरा आदि) को छोड़े बगैर सम्भव नहीं ध्यान में जाने के लिए तीन सीढियां है।
पहला सीढ़ी है : बहने का अनुभव
बहने का मतलब है नदी में तैरना नहीं बहना नदी के साथ एक हो जाना नदी जहां ले जाए वहीं हमारी मंजिल है तब फिर नदी से कोई दुश्मनी नहीं रह जाती है यह समर्पण का भाव आने पर ही द्वन्द से मुक्ति मिलती है समर्पण का अर्थ है इस जीवन के साथ हमारी कोई दुश्मनी न रह जाए इस जीवन के साथ हम बह सकें तैरें न।
दूसरी सीढ़ी है : मरने का मृत्यु का मिट जाने का
जैसे कोई बीज मिटता है तो फिर अंकुर हो जाता है जैसे कोई कली मिटती है तो फूल हो जाती है जब कुछ मिटता है, तभी कुछ हो पाता है जब हम आदमी की तरह मिटेंगे , तभी हम परमात्मा की तरह हो पाएंगे जन्म की पहली कड़ी मृत्यु है और जो मरना नहीं सीख पाता , मिटना नहीं सीख पाता , वह कभी भी उस विराट तक नहीं पहुंच पाता जहां तक पहुंचने में सब कुछ छूट जाना जरूरी हैअपने अहं को मिटाए बगैर मुक्त नहीं हुआ जा सकता।
तीसरी सीढ़ी है : तथाता
तथाता का अर्थ है सर्वस्वीकार्यता, चीजें जैसी हैं वैसी हैं हमें उनसे कोई विरोध नहीं पक्षी आवाज कर रहे हैं धूप गरम है हवाएं चलती हैं और ठंड मालूम पडती है जिंदगी जैसी है वैसी हमें स्वीकार है न हम उसमें कोई बदलकरना चाहते हैं न कोई हेर फेर करना चाहते हैं हमारा कोई विरोध नहीं हमारी कोई अस्वीकृति नहीं तथाता का अर्थ है परिपूर्ण राजी हो जाना टोटल एक्सेप्टेबिलिटी परमात्मा को जानना है अगर तो जीवन को पूरी तरह स्वीकार करके ही जान सकेंगे तथाता अर्थात् सब स्वीकार इन तीनों सीढ़ियों को पार करने पर ही ध्यान में प्रवेश होता है।