रागु रोषु इरिषा मदु मोहु, जनि जनि सपनेहुं इन्ह के बस होहु।
सकल प्रकार बिकार बिहाई, मन क्रम बचन करेहु सेवकाई॥
अर्थात- राग (अत्यधिक प्रेम), रोष (क्रोध), ईर्ष्या (जलन), मद (अहंकार) और मोह (लगाव) इस पांच कामों से हमेशा नुकसान ही होता है, अतः इनसे सपने में भी दूर ही रहना चाहिए।
राग यानी अत्यधिक प्रेम….
राग और मोह में अंतर होता है राग के कारण वस्तु का वास्तविक स्वरुप न दिखकर उसका उल्टा स्वरुप दिखने लगता है जैसे कोई वस्तु है यदि आपको उससे राग होगा तो आप कहोगे कि यह वस्तु बहुत अच्छी है और उसी वस्तु से किसी को द्वेष होगा तो वह कहेगा कि यह वस्तु खराब है बहुत ज्यादा प्रेम की वजह से हम सही-गलत को नहीं पहचान पाते हैं कई बार बहुत अधिक प्रेम की वजह से मनुष्य विवेकहीन हो जाता है और अधर्म तक कर जाता है –
नास्ति विद्यासमं चक्षुनास्ति सत्यसमं तपः।
नास्ति रागसमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम्॥
अर्थात् विद्या के समान नेत्र नहीं है सत्य के समान तप नहीं है राग के समान अन्य कोई दुःख नहीं है तथा त्याग के समान अन्य कोई सुख नहीं है ।
यत् सुखं सेवमानोपि धर्मार्थाभ्यां न हीयते।
कामं तदुपसेवेत न मूढव्रतमाचरेत्॥
विदुर नीति
भावार्थ : व्यक्ति को यह छूट है कि वह न्यायपूर्वक और धर्म के मार्ग पर चलकर इच्छानुसार सुखों का भरपूर उपभोग करें लेकिन उनमें इतना आसक़्त न हो जाये कि अधर्म का मार्ग पकड़ ले।
रोष यानी क्रोध…
क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है। क्रोध में मनुष्य अच्छे-बुरे की पहचान नहीं कर पाता है। जिस व्यक्ति का स्वभाव गुस्से वाला होता है, वह बिना सोच-विचार किये किसी का भी बुरा कर सकता है।
क्रोध की वजह से मनुष्य का स्वभाव दानव के समान हो जाता है। क्रोध में किये गये कामों की वजह से बाद में शर्मिदा होना पड़ता है और कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है। इसलिए इस आदत को छोड़ देना चाहिए।
ईर्ष्या यानी जलन…..
जो मनुष्य दूसरों के प्रति अपने मन में ईर्ष्या या जलन की भावना रखता है, वह निश्चित ही पापी, छल-कपट करने वाला, धोखा देने वाला होता है वह दूसरों के नीचा दिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है जलन की भावना रखने वाले के लिये सही-गलत के कोई पैमाने नहीं होते हैं जैसे दुर्योधन दुर्योधन सभी पांडवों की वीरता और प्रसिद्धि से जलता था इसी जलन की भावना की वजह से दुर्योधन ने जीवनभर पांडवों का बुरा करने की कोशिश की और अंत में अपने कुल का नाश कर दिया अतः हमें ईष्या या जलन की भावना कभी अपने मन में नहीं आने देना चाहिए।
मद यानी अहंकार…
सामाजिक जीवन में सभी के लिये कुछ सीमाएं होती हैं हर व्यक्ति को उन सीमाओं का हमेशा पालन करना चाहिए, लेकिन अहंकारी व्यक्ति की कोई सीमा नहीं होती अंहकार में मनुष्य को अच्छे-बुरे किसी का भी होश नहीं रहता है अहंकार के कारण इंसान कभी दूसरों की सलाह नहीं मानता, अपनी गलती स्वीकार नहीं करता और दूसरों का सम्मान नहीं करता ऐसा व्यक्ति अपने परिवार और दोस्तों को कष्ट पहुंचाने वाला होता है।
मोह यानी लगाव…..
सभी को किसी ना किसी वस्तु या व्यक्ति से लगाव जरूर होता है यह मनुष्य के स्वभाव में शामिल होता है, परन्तु किसी भी वस्तु या व्यक्ति से अत्यधिक मोह भी बर्बादी का कारण बन सकता है किसी से भी बहुत ज्यादा लगाव होने पर भी व्यक्ति सही-गलत का फैसला नहीं कर पाता है और उसके हर काम में उसका साथ देने लगता है जिसकी वजह से कई बार नुकसान का भी सामना करना पड़ जाता है उदारहण के लिये धृतराष्ट्र धृतराष्ट्र को अपने पुत्र दुर्यौधन के लिये बहुत अधिक लगाव था जिसकी वजह से धृतराष्ट्र ने जीवनभर अधर्म में दुर्योधन का साथ दिया और इसी मोह की वजह से उनके पूरे कुल का नाश हो गया अतः किसी से भी बहुत ज्यादा मोह रखना गलत होता है, इसे छोड़ देना चाहिए।
- अजीत कुमार सिंह