राहुल कुमार गुप्ता, सीनियर कॉपी एडिटर
पुरानी मान्यताओं को खारिज करने में कष्ट भी होता है और दुख भी होता है। लेकिन इसके समानांतर कोई नई मान्यता चल रही हो और असरदार हो… तो लगता है न्याय पथ पर चल रहे हैं, कष्ट तो मिलने ही हैं। सुकरात, गैलीलियो सबको मिले थे तो हम तो इनके आगे कुछ भी नहीं। क्या श्री राम के मौसेरे भाई बबेरू से बबेरू या अर्जुन पुत्र बब्रुवाहन के नाम पर बबेरू का नाम बबेरू पड़ा? इस बात को तथ्यों से समझते हैं।
भारत में शुरआती दौर में हर बातों को कम्यूनेट करने का एक ही तरीका था श्रुति माध्यम! यही श्रुति माध्यम ही पीढ़ी दर पीढ़ी पुरानी बातों को आगे बढ़ाने का कार्य करता रहा। इन बातों का लिपिबद्ध होना तो संभवतः शुंग काल के आसपास से शुरू हुआ। जो बहुत आवश्यक रहे वो पहले लिपिबद्ध हुए। संभवतः बबेरू के पूजनीय पूर्वजों को राजा बबेरू से रिलेटेड कोई साहित्य नहीं मिला होगा, होता तो तब ही मिलता, इसका जिक्र तो कुछ प्राचीन वंशावलियों में सिमटा और छिपा हुआ था। नाम बबेरू (बभरू) जो रोमपाद के पुत्र थे, बबेरू कस्बे के पूर्वजों द्वारा पीढ़ियों को दिया जा रहा था। तटस्थ लोगों का इतिहास, लोककथाओं और कहानियों में ज्यादा जिक्र नहीं होता। ये नाम बभ्रु ही पीढ़ी दर पीढ़ी मिलता रहा लेकिन राजा रोमपद के पुत्र और श्री राम के मौसेरे भाई बबेरू ( babhru) का ज्यादा कहीं जिक्र न होने से रोमपद के पुत्र बबेरू ( babhru) का लोप होता चला गया।
किसी गांव में सभी व्यक्ति बेहतरीन और रोचक ढंग से कहानी को या किसी बात को सही से नहीं रख सकते। एक लंबे समयांतराल और तमाम आपदाओं के साथ संभव है कोई कड़ी जरूर छूटी होगी। और उस गैप को भरने के लिए संभव है हमारे पूर्वजों ने बबेरू नाम के स्थान को पौराणिकता से जोड़ने के लिए मिलते जुलते नाम बब्रुवाहन का सहारा लेना पड़ा। क्योंकि यह नाम महाभारत महाकाव्य में कई बार मिलता है। तो इस नाम की जीवंतता सदैव बनी रही। मानवीय प्रकृति है की वो खुद को किसी न किसी ऐतिहासिक या धार्मिक किताबों के किरदारों (महापुरुषों) से खुद को को-रिलेट रखना चाहता है।
बबेरू के अपने पूर्वजों और अग्रजों को नमन और आभार ! उन्होंने हमें (बबेरू को) ऐतिहासिकता और पौराणिकता से जोड़े रखा और गौरवान्वित होने के असीम क्षण देने के सदैव कारक बने रहे।
लेकिन सत्य हर काल परिस्थिति में वही सत्य नहीं होता, श्री कृष्ण जी भी अपने उपदेश में सत्य का ऐसा ही उल्लेख करते हैं । विज्ञान और अन्य विषय भी सत्य का ऐसा ही उपयोग करते हैं। जब तक कोई नई खोज नहीं हो जाती पुरानी बातें और सिद्धांत ही सत्य होते हैं। नए सिद्धांतों के प्रूफ होने के बाद वो पुराने सिद्धांतों का स्थान ले लेते हैं। लेकिन पुराने सिद्धांत सिरे से खारिज नहीं होते उनका भी विषय के इतिहास में जिक्र बना रहता है।
पुराने लोगों की क्रिएटिविटी और कार्य को सिरे से कोई नहीं खारिज कर सकता। उनका सम्मान तो यथावत चलता ही रहता है।
देखें पार्ट 1 लेख –
https://shagunnewsindia.com/baberu-was-named-after-lord-shri-rams-cousin-baberu/
वास्तव में सभी साहित्य और इतिहास यहां तक कि महाभारत स्वयं ही राजा चित्रवाहन, उनकी पुत्री चित्रांगदा और चित्रांगदा अर्जुन के पुत्र बब्रुवाहन को पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर से ही जोड़ता है। नाग कन्या उलूपी को मणिपुर के उत्तर में बसे नागालैंड से जोड़ता है। और महाभारत काल में हमारा बबेरू चेदी महाजनपद में आता था जिसका राजा शिशुपाल था फिर उसके वध के बाद उसका पुत्र राज संभालता है। बबेरू में बब्रुवाहन के राज का कोई स्रोत नहीं है।
इतिहास की कुछ प्राचीन किताबों और पुराणों में चंद्रवंशी यदुवंश विदर्भ के पुत्र रोमपद और उनके अग्रजों और वंशजों की राज्य सीमाएं भी जमुना के दक्षिण में प्रदर्शित किया गया है।
पुराणों में 57 बभरू राजाओं के बारे में बहुत कम उल्लेख है लेकिन उनकी राजधानियां भौगोलिक दृष्टि से इस बबेरू कस्बे के लिए कतई फिट नहीं हो रहीं। जबकि विदर्भ पुत्र रोमपद या लोमपाद के पुत्र बबेरू के वंशज चेदी का भौगोलिक क्षेत्र यमुना नदी के दक्षिण में बताया गया है। हमारे बबेरू कस्बे की भी भौगोलिक स्थिति यही है। बहुत से ग्रंथों और किताबों के अध्ययन के बाद और उन्हें सही तरीके से लिंक करने के बाद ही निष्कर्ष तक पहुंचा गया है। और अब जो कमियां बची होंगी वो आगे की पीढ़ी जरूर इसमें सुधार कर बबेरू की ऐतिहासिकता और पौराणिकता के महत्व को सही दिशा देने का कार्य करती रहेगी।
Note: आलेख निम्न स्रोतों से हैं: –
ऋग्वेद
सप्तऋषि पंचांग प्राचीन वंशावली
गरुण पुराण
विष्णु धर्मोत्तर
मार्केंड्या पुराण
महाभारत
भागवत पुराण
कूर्म पुराण
हरिवंश पुराण
प्राचीन चरित्र कोश
एंसिएंट इंडियन: हिस्ट्रोरिकल ट्रेडिशन
चित्रांगदा : एमएमएस शास्त्री चित्राव,
भारतवर्षीय प्राचीन चरित्रकोश
कृष्ण द्वैपायन व्यास की महाभारत , मूल संस्कृत से अनुवादित, किसारी मोहन गांगुली, कलकत्ता 1883-1896
चित्रांगदा : विलफ्रेड हचज़रमेयर, स्टडीज इन द महाभारत , संस्करण सावित्री 2018