जी के चक्रवर्ती
जब लोग स्वम मेरे ऊपर आस्था और विश्वास रख कर मेरे पास आ रहें हैं तो इसमे मैं क्या करूं: बाबा धीरेद्र शास्त्री
आज एक बार फिर से हमारे देश में इस 21वीं शदी के दौर में बाबाओं धर्म गुरुओं के विषय मे जोरों से चर्चायें हो रही है। ऐसे में फिर से एक बार बाबा धीरेद्र शास्त्री का नाम प्रमुखता से सामने आया है, अचानक से इतने कम उम्र वाले बाबा धीरेद्र शास्त्री का नाम उछल कर सामने आने से संदेह का पैदा होना स्वाभाविक सी बात बात है और ऐसे में मीडिया से लेकर धार्मिक संस्थाओं एवं धर्म गुरुओं का आंदोलित होना भी लाजमी है लेकिन एक बात जो निश्चित रूप से संदेहास्पद स्थिति की ओर इशारा करता हैं कि कोई बाबा अचानक से इतनी बड़ी सिद्धियां प्राप्त कर समाज के लोगों के सामने अचानक से आ खड़ा होता है लेकिन इससे पहले इनके विषय में तनिक भर भी किसी भी तरह की कोई बात लोगों को कहते सुनते नहीं देखा गया और अचानक से इतने बड़े पहुंचे हुए बागेश्वर धाम के एक सन्यासी के रूप मे प्रकट होने में सबसे बड़ी बात यह है कि किसी साधू सन्यासी को सिद्धियां प्राप्त कर यहां तक पहुंचने में कई वर्षों की घोर साधना तपस्या करने की आवश्यकता होती है जोकि आज की स्थिति में असमान्य सी बात लगती है।
वैसे हम कहे तो हमारे यहां इससे पहले भी अनेको साधु संतों हुये हैं जिन लोगों ने कभी भी आडम्बर, प्रोपेगैंडा रोज अनूठे आश्चर्यजनक करतबों से समाज को लोगों को अचंभित कर अपने प्रति आस्था विश्वास जगा कर लोगों को अपने जाल फंसाने में की आवश्यकता कभी महसूस नहीं की और नहीं लोगों को किसी कार्य के लिये बाध्य किया।
आधुनिक भारत में कई संत एवं बाबा हुए हैं जैसे महर्षि महेश योगी, महर्षि अरविंद, दादा लेखराज, सत्य सांई बाबा, स्वामी शिवानंद, आचार्य श्रीराम शर्मा , स्वामी रामतीर्थ, स्वामी कुवलयानंद, मेहर बाबा, राघवेंद्र स्वामी, श्रीकृष्णामाचार्य, शीलनाथ बाबा, दादाजी धूनी वाले बाबा, आनंदमूर्ति बाबा, रमन महर्षि, देवराहा बाबा, बाबा नीम करोली महाराज, सिडनी के साईं बाबा जैसे अनेको संतों ने बिना किसी लाग लपेट के जादू, करतब दिखाने के बजाय बिना किसी मोह माया या सम्मोहन किये बिना ही इंसान और इंसानियत के भले के लिए काम करते रहे और ऐसे लोगों ने ख्याति या प्रसिद्धी पाने के बजाय अपने कार्यों में संलग्न रहे।
उत्तर भारत के एक प्रसिद्ध बाबा जिन्हें हम देवरहा बाबा के नाम से जानते थे। ऐसा कहा जाता है कि हिमालय में कई वर्षों तक वे अज्ञात रूप में रहकर साधना किया और उसके बाद वे हिमालय से लौट कर आने के बाद वे उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में सरयू नदी के किनारे एक मचान पर अपना डेरा डाल कर धर्म-कर्म करने लगे, जिस कारण उनका नाम देवरहा बाबा पड़ गया।
शायद आप लोगों को याद होगा। यह उस समय की बात है जब देश की प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी हुआ करती थी वे स्वयं धीरेन्द्र ब्रह्मचरी की अनुयायी थी।
इंदिरा गांधी को योग सिखाते-सिखाते धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने पीएम हाउस पर ऐसी पकड़ बनाई कि दिल्ली की सियासी गलियारों से लेकर सत्ता भी उनके इशारों पर चलने लगी।
यहां अधिक विस्तार में न जाते हुए हम एक और शख्सियत की बात करते हैं, जिन्हे हम चंद्रास्वामी के नाम से जानते हैं।
जब उनकी बात करें तो उन्होंने एक ज्योतिषी के रूप में अपने कौशल के माध्यम से प्रसिद्धि प्राप्त की थी, उस दौर में प्रधानमंत्री रहे “पीवी नरसिम्हा राव”, “चंद्र शेखर” और “वीपी सिंह” के साथ उनके जुड़ाव के बहुत सारे किस्से हैं और इन्ही लोगों से सम्बंधों के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय स्तर पर उनकी प्रसिद्धि बढ़ने के साथ-साथ चंद्रास्वामी इनके आध्यात्मिक सलाहकार भी बन गये थे।
वर्ष 991 में राव के प्रधान मंत्री बनते ही, चंद्रास्वामी ने दिल्ली के कुतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया में विश्व धर्मायतन संस्थान के नाम से एक आश्रम का निर्माण करवाया था। आश्रम के लिए जमीन स्वयं इंदिरा गांधी ने आवंटित की थी। ऐसा कहा जाता है कि चंद्रास्वामी ने ब्रुनेई के सुल्तान , बहरीन के शेख ईसा बिन सलमान अल खलीफा, अभिनेत्री एलिजाबेथ टेलर , ब्रिटिश पीएम को भी आध्यात्मिक सलाह दी थी। मार्गरेट थैचर, हथियारों के सौदागर अदनान खशोगी, अपराधियों का सरगना दाऊद इब्राहिम और टिनी रॉलैंड, यासर अराफात जैसे हस्तियां उनके वफादार समर्थकों में थे उनके सचिव विक्रम सिंह, विजयराज चौहान और स्वर्गीय कैलाश नाथ अग्रवाल शामिल हैं, जिन्हें मामाजी के नाम से लोग जानते थे, और कुछ समय बाद ऐसे छूमंतर हुये कि दुनिया हमेशा-हमेशा के लिये उनका नाम भूलते चले गये और इन्ही नामों में से एक महत्त्वपूर्ण नाम आशाराम बापू का भी है जिनके विषय में ज्यादा कुछ कहना निरर्थक है क्योंकि आप सभी को उनके विषय में अच्छी तरह से जानते है।
आज के बागेश्वर धाम के बाबा धीरेद्र शास्त्री का नाम भी ठीक उसी तरह के बाबाओं के श्रेणि में न जुड़ जाए, क्योंकि कि आज जिस तरह वे स्वयं कहते सुनते देखे जाते हैं कि मैं कोई साधु, संत, महात्मा या भगवान नहीं हूं बल्कि मैं तो एक कथा वाचक साधारण सा व्यक्ति हूँ और शायद वे सही ही कह रहे हों क्योंकि यथा संभव है कि उनके पीछे किसी के वरदहस्त होने वालीं बात सभी भी इंकार नही किया जा सकता है और फिर कुछ दिनों के बाद कोई ऐसी बात हो जाए तो यही बाबा धीरेन शास्त्री कहते सुनते दिखे कि मैं तो पहले से ही कह रहा हूं कि मैं एक साधारण व्यक्ति हूँ ऊपर से मैं तो किसी को बुलाने नहीं गया था, जब लोग स्वम मेरे ऊपर आस्था और विश्वास रख कर मेरे पास आ रहें हैं तो इसमे मैं क्या करूं?
(यह वरिष्ठ लेखक की अपनी खोजपूर्ण रिपोर्ट पर आधारित लेख हैं )