डॉ राकेश कुमार आर्य
लाल बहादुर शास्त्री हमारे अब तक के सभी प्रधानमंत्रियों में से अकेले एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें लोग आज भी सम्मान के साथ ‘ शास्त्री जी’ कहकर पुकारते हैं। उनका 18 महीने का संक्षिप्त सा कार्यकाल लोगों को हृदय से प्रभावित कर गया था। युद्ध के क्षेत्र में उन्होंने जिस प्रकार देश का नेतृत्व किया उससे उन्होंने यह सिद्ध कर दिया था कि वह मां भारती के लाल भी हैं, बहादुर भी हैं और शास्त्री भी हैं। 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय उन्होंने जिस बहादुरी के साथ देश का नेतृत्व किया, उसके चलते भारत पाक युद्ध के समय देश को विजय प्राप्त हुई थी। अभी कुछ समय पहले ही चीन के हाथों जिस प्रकार देश को पराजय का सामना करना पड़ा था, उसकी सारी कालिख को लाल बहादुर शास्त्री जी के यशस्वी नेतृत्व ने धो डालने का काम किया।
शास्त्री जी ने अपने पूर्ववर्ती नेता नेहरू की कहीं आलोचना नहीं की। उन्होंने शांत रहकर नई लीक पर काम करना आरंभ किया। इससे शास्त्री जी के सुलझे हुए व्यक्तित्व की जानकारी होती है। युद्ध के उपरांत रूस ने भारत और पाकिस्तान दोनों को अपने ताशकंद नामक शहर में वार्ता के लिए आमंत्रित किया। रूस संघ के प्रमुख कोसिगिन इस वार्ता की मध्यस्थता कर रहे थे। इस वार्ता का सबसे दु:खद अध्याय या मोड़ वह था, जब भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी पर दबाव डालकर उन्हें इस बात के लिए तैयार किया गया था कि वह भारत की सेना द्वारा पाकिस्तान की जीती हुई भूमि को लौटा दें। 10 जनवरी 1966 को यह समझौता हुआ था। शास्त्री जी इस समझौते को लेकर अत्यंत चिंतित और दु:खी थे। चिंतित इसलिए कि देश के लोगों को यह समझौता पसंद नहीं आ रहा था , और दु:खी इस बात के लिए कि उन पर विदेश की भूमि पर दबाव बनाकर उनकी इच्छा और भावना के विपरीत जाकर यह समझौता करवाया गया था।
अभी हाल ही में मेरी संपन्न हुई सासाराम बिहार की यात्रा के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस की रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट की लेफ्टिनेंट बिहार की राजधानी पटना में रह रहीं स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती आशा सहाय चौधरी के सुपुत्र श्री संजय चौधरी जी ने शास्त्री जी की मृत्यु के संबंध में कुछ नए रहस्यों की ओर संकेत किया। उन्होंने बताया कि लाल बहादुर शास्त्री जी के सबसे छोटे बेटे उनके सहपाठी रहे हैं। जिससे इस परिवार के साथ उनका घनिष्ठता का संबंध रहा है। उन्होंने बताया कि जिस समय लाल बहादुर शास्त्री देश के नेता के रूप में ताशकंद समझौता वार्ता में देश का नेतृत्व कर रहे थे, उस समय रूस ने उन पर दबाव बनाकर भारत द्वारा पाकिस्तान के विजित क्षेत्र को लौटाने का दबाव बना दिया था। शास्त्री जी ने दु:खी मन से उस समय ताशकंद समझौते पर भारत की ओर से हस्ताक्षर कर दिए थे। उसके पश्चात उन्होंने रात्रि में अपने घर के लिए फोन मिलाया। उनकी बेटी ने उनका टेलीफोन सुना। कुछ देर बात करने के उपरांत उनकी बेटी ने फोन अपने पति को दे दिया । अपने दामाद से लाल बहादुर शास्त्री जी ने पूछा कि – ‘ देश का माहौल कैसा है ?’ उनके दामाद ने इस ओर से बोलते हुए कहा कि ‘ देश का माहौल इस समय गरम है। ‘ बात स्पष्ट थी कि देश के लोग भारत के वीर सैनिकों द्वारा जीते गए क्षेत्र को पाकिस्तान को देने के समझौते को अच्छा नहीं मान रहे थे।
लाल बहादुर शास्त्री जी जनमानस की भावनाओं का सम्मान करने वाले नेता थे। उन्हें यह भली प्रकार ज्ञात था कि देश के लोग क्या चाहते हैं ? देश की जनभावना का सम्मान करते हुए ही उन्होंने युद्ध काल में तेजस्विता के साथ भारत का नेतृत्व किया था। स्पष्ट है कि जो कुछ ताशकंद में हो गया था, उससे वह स्वयं भी सहमत नहीं थे। इसीलिए मनसा पाप का शिकार बने शास्त्री जी देश के माहौल को जानने की बात कर रहे थे।
दामाद के उत्तर को सुनकर देश के यशस्वी और संवेदनशील प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने तब कहा था कि ‘ कोई बात नहीं ? आप सब शांत रहें। हम यहां से एक ऐसे व्यक्तित्व को अपने साथ लेकर आ रहे हैं , जिसे देखकर सारा देश गदगद हो जाएगा।’ संजय चौधरी जी बताते हैं कि लाल बहादुर शास्त्री जी की इस बात का अर्थ परिवार के लोगों ने यह लगाया था कि रूस उन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सौंपने पर सहमत हो गया था। बहुत संभव है कि रूस के प्रमुख कोसिगिन द्वारा उनसे ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर ही यह कहकर कराये गए हों कि हम आपको नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सौंप देंगे ? जिसे देखकर आपके देश में प्रसन्नता की लहर दौड़ जाएगी। तब आपके द्वारा इस समझौते पर किए गए हस्ताक्षरों की ओर लोगों का ध्यान नहीं जाएगा।
रूस हमारा चाहे जितना गहरा मित्र रहा हो, परंतु अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सब अपने स्वार्थ के खिलाड़ी होते हैं। इसलिए रूस की मित्रता भी एक सीमा तक ही प्रशंसनीय कही जाएगी। जब अपने स्वार्थ की बात आएगी तो रूस सहित कोई भी देश हमारे साथ खड़ा नहीं होगा। उस समय पश्चिमी देशों की मीडिया में यह प्रचार किया जा रहा था कि रूस के ताशकंद में हो रही भारत पाक वार्ता टूट जाएगी अर्थात पश्चिमी मीडिया इस बात पर बल दे रही थी कि रूस जिस प्रकार भारत पाक को एक साथ बैठाकर समझौता कराने का श्रेय लेना चाहता है , वह उसे मिल नहीं पाएगा। स्पष्ट है कि रूस के नेता कोसिगिन पर यह बहुत भारी दबाव था कि वह जैसे भी हो इस वार्ता को सफल करके दिखाएं। इसके लिए बहुत संभव है कि उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को शास्त्री जी को देने का झूठा वचन देकर ताशकंद समझौता संपन्न करा लिया हो। जब अपना स्वार्थ सिद्ध हो गया तो फिर यहां से आगे शास्त्री जी को हटाने का खेल आरंभ हुआ हो। क्योंकि रूस किसी भी कीमत पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लौटाना नहीं चाहता था। इसका कारण यह था कि ऐसा करने से रूस, जापान, ब्रिटेन के कई रहस्यों से पर्दा उठ जाता। संभावना है की रहस्य को रहस्य बनाए रखने के लिए एक नए रहस्य अर्थात शास्त्री जी की हत्या को अंजाम दिया गया हो ?
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