कई दशक पहले की बात है। लंदन की लिस्टर युनिवर्सिटी के जूलॉजी विभाग को कुछ सैलामेंडर (न्यूट) की जरूरत पड़ी नमूने के लिए। एक 11 साल के लड़के को जब यह पता चला तो उसने अपने पिता के जरिये कहलाया कि वह जितने चाहिए सैलामेंडर विभाग को दे सकता है लेकिन वह इसके लिए प्रति सैलामेंडर तीन डालर लेगा। उसके पिता कॉलेज के प्रिंसिपल थे। बात पक्की हो गई और उसने जितने चाहिए थे, उतने सैलामेंडर दे दिए। उसने यह नहीं बताया कि ये कहां से मिले। बाद में पता चला कि उसने ये सैलामेंडर जूलॉजी विभाग के पास के तालाब से प्राप्त किये थे। सैलामेंडर एक तरह का उभयचर (एंफीबिया) होता है जो पानी और धरती की सतह दोनों में रह सकता है। इसके चार पैर और लंबी पूंछ होती है। यह मेढक का भाई होता है लेकिन भारत में नहीं पाया जाता। यह लड़का अपने आसपास के क्षेत्र में खूब घूमता था और हर चीज को बड़े गौर से देख कर उसे समझने की कोशिश करता था।
इस घटना के एक साल बाद उस बालक की गोद ली बहन ने उसे एक एंबर दिया जिसमें कुछ प्रागैतिहासिक जीव भी जीवाश्म के रूप में थे। एंबर को हिंदी में कहरुवा या तृणमणि कहा जाता है तो किसी वृक्ष का जीवाश्मित रेजिन (गोंद) होता है। इसका उपयोग आभूषण बनाने में भी किया जाता है। इसके लगभग छह दशक बाद उस बच्चे ने इस पर ‘ एंबर द टाइम मशीन’ नाम से वृत्त चित्र बनाया जिसका प्रसारण पहली बार 2004 में किया गया।
जिस बच्चे ने यह सब किया उसका नाम डेविड फ्रेडरिक एटनबरो था। उसके पिता का नाम फ्रेडरिक था। डेविड का जन्म आठ मई 1926 को मिडिलसेक्स के इस्लेवर्थ में हुआ था। वह तीन भाइयों में बीच के थे। उनके बड़े भाई रिचर्ड एक्टर और डाइरेक्टर थे और उनका देहांत 2014 में हुआ। छोटे भाई जॉन इटैलियन कार निर्माता कंपनी अल्फा रोमियो में अधिकारी थे जिनका देहांत 2012 में हुआ।
डेविड एटनबरो के बारे में यह सब मुझे क्यों बताना पड़ा, वह इसलिए क्यों कि बीबीसी अर्थ अपने हर कार्यक्रम में उन्हें 97 वर्ष का होने पर लगातार बधाई दे रहा है। ( यह भी हो सकता है कि वह उनके जन्म दिन पर प्रसारित हुए कार्यक्रम को फिर से प्रसारित कर रहा हो।) वह बधाई के पात्र भी हैं कि क्यों कि इस उम्र में भी जीवजगत के बारे में उनका प्रेम कम नहीं हुआ है और टीवी पर उनके वन्य जीवन और पृथ्वी के रहस्यों से पर्दा उठाते कार्यक्रम लगातार आते हैं। यदि किसी कार्यक्रम में आप किसी बुजुर्ग व्यक्ति को देखें जिनके घुटने में तकलीफ के कारण चलने में दिक्कत होती है, जिसके गोल,भरे और आकर्षक चेहरे पर झुर्रियों के बीच सदा मु्स्कराहट बनी रहती हो, जो धीमे स्वर में अपनी बात सटीक और प्रभावी तरीके से कहते हों जो कठिन से कठिन बात को आसान शब्दों को दर्शकों को समझाते हों तो आप जान जांए कि वही डेविड एटनबरो हैं।
बचपन में जिस बच्चे को नदी- तालाब के किनारे घूमने में आनंद आता हो, जिसका अध्ययन कक्ष जीवाश्मों के नमूनों और तरह-तरह की अजीबोगरीब चीजों से भरा रहता हो,वही डेविड एटनबरो आज दुनिया के सबसे मशहूर ब्राडकास्टर, जीवविज्ञानी, प्रकृतिशास्त्री और प्रजेंटर हैं। वह बीबीसी नेचुरल हिस्ट्री इकाई से अभी तक जुड़े हुए हैं और नेचुरल हिस्ट्री डाक्यूमेंट्री सीरीज प्रकृति को समझने की सबसे अच्छी सीरीज हैं। इनमें पृथ्वी के जीवों और वनस्पितियों के बारे में सूक्ष्म से सूक्ष्म और गहन जानकारी है। बीबीसी अर्थ इनका लगातार प्रसारण करता रहता है।
डेविड पहले बीबीसी में सीनियर मैनेजर थे। 1954 में उन्होंने ‘जू क्वेस्ट’ नाम से कार्यक्रम का प्रसारण करना शुरू किया जो बहुत लोकप्रिय हुआ। यहीं से उनके मन में इसे और विस्तार देने की बात आई। प्रकृति के प्रति जिज्ञासा तो उनके खून में ही थी। उन्होंने जो इस क्षेत्र में कदम रखा तो वह अभी तक रुका नहीं। उनको कई मानद डिग्री और सम्मान मिला है जिसमें एमी अवार्ड प्रमुख रूप से है जो उनके अपनी बात कहने के लाजवाब तरीके ( आउटस्टैंडिंग नरेशन ) के लिए दिया गया। उनकी धीमी आवाज में लगभग फुसफुसा कर अपनी बात कहने का अंदाज लोगों को बहुत भाया। पहले वह दुनिया के आश्चर्य लोगों के सामने लाते थे लेकिन बाद में उनका फोकस पर्यावरण सुरक्षा और पृथ्वी को और बेहतर बनाने की तरफ हुआ। वह ब्रिटेन की राष्ट्रीय संपत्ति माने जाते हैं। एक रहस्य की बात यह भी है कि उनको 2013 में पेसमेकर लगा है और दो ही साल बाद दोनों घुटने बदले गए हैं लेकिन डेविड हैं कि अपनी दुनिया में खोये रहते हैं। वह कहते हैं कि यदि मै कोयला खन कर पैसे कमा रहा होता तो इसे बंद कर देता लेकिन मैं अपने चारों ओर की खूबसूरत दुनिया को देखने के लिए चलता रहता हूं और उसके बारे में दूसरों को बताता हूं तो इतनी सुंदर चीज कैसे बंद कर दूं।
उनके बेटे राबर्ट कैनबरा विश्वविद्यालय में बायो-एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफसर हैं और बेटी सूसन स्कूल में हेडमिस्ट्रेस रह चुकी हैं। उनकी पत्नी जेन एलिजाबेथ का देहांत 1997 में हो चुका है। डेविड एटनबरो को मेरी बहुत शुभकामनाएं। वह स्वस्थ रहें और प्रकृति के रहस्यों से पर्दा उठाते रहें।
- रामधनी द्विवेदी