आज के युवाओं में काम करने को लेकर एक खास किस्म का जुनून होता है। इसके पीछे उनका मकसद यह रहता है कि वे जल्द तरक्की की सीढ़ियां चढ़ें और कामयाबी के साथ ज्यादा से ज्यादा पैसा कमा कर अच्छी जिंदगी जीने लायक बन सकें और समाज में सम्मान प्राप्त कर सकें। इसी के चलते वे अपने बाकी सारे शौक छोड़कर घंटों बैठे काम करते रहते हैं। लगन के साथ काम करना अच्छी बात है लेकिन हर चीज की सीमा होती है। फिर शरीर की अपनी जरूरतें होती हैं। लगातार घंटों बैठे काम करने से शरीर और मस्तिष्क को वह ताजगी नहीं मिल पाती जो उसके लिए आवश्यक है। शारीरिक गतिविधियों का अभाव बहुत सारी समस्याओं का कारण बन जाता है।
एक रिसर्च के अनुसार घंटों बैठकर काम करने से युवाओं में आजकल अवसाद बढ़ रहा है क्योंकि एक ही जगह पर ज्यादा देर काम करने से उनमें चिंता और तनाव सामान्य से पांच गुना अधिक बढ़ जाता है। साथ ही चिड़चिड़ेपन में भी वृद्धि हो जाती है।
इस शोध में जिन महिलाओं और पुरुषों को शामिल किया गया, उन्हें कोई बीमारी नहीं थी लेकिन गतिहीन जीवन शैली और घंटों बैठकर काम करने की इनकी आदत से इनकी मनोदशा और व्यवहार में परिवर्तन पाया गया। ये समस्याएं इसलिए स्वाभाविक हैं क्योंकि चिकित्सा विज्ञान शारीरिक श्रम और गतिशीलता को स्वास्थ्य के लिए जरूरी मानता है। भारतीय संस्कृति में तो इस पर काफी जोर दिया गया है। स्कूलों में खेल और शारीरिक प्रशिक्षण का एक विषय अलग से होता है। जब शरीर स्वाभाविक गतिशीलता से वंचित हो जाता है तो तमाम समस्याएं वैसे ही पैदा होने लगती हैं। लगन से और ज्यादा काम करना अच्छी बात है पर शरीर को ताजगी देते रहना भी उतना ही आवश्यक है।